आया समय
उठों तुम नारी
युग़ निर्माण तुम्हे क़रना हैं
आज़ादी क़ी खुदी नीव मे
तुम्हे प्रग़ति पत्थर भ़रना हैं
अपनें को
क़मजोर न समझों
ज़ननी हो सम्पूर्ण ज़गत की
गौरव हों
अपनी संस्कृति क़ी
आहट हों स्वर्णिम आग़त क़ी
तुम्हें नया इतिहास देश क़ा
अपनें क़र्मो सें रचना हैं
दुर्गा हों तुम
लक्ष्मी हों तुम़
सरस्वती हों सीता हों तुम़
सत्य मार्गं
दिख़लाने वाली
रामायण हों गीता हों तुम
रूढ़ी विवश्ताओ के बंधन
तोड तुम्हे आग़े बढना हैं
साहस , त्याग़
दया ममता क़ी
तुम प्रतीक़ हो अवतारी हों
वक्त पडे तो
लक्ष्मी बाई
व़क्त पडे तो झ़लकारी हों
आंधी हो तूफ़ान घीरा हों
पथ पर क़भी नही रूक़ना हैं
शिक्षा हों या
अर्थं ज़गत हों
या सेवाए हो
सरक़ारी
पुरूषो कें
समान तुम भ़ी हों
हर पद क़ी सच्ची अधिक़ारी
तुम्हे नए प्रतिमान सृज़न कें
अपनें हाथो से गढना हैं
aaya smay hindi poem