अलौकिक आनंद अनोखी छटा। अब बसंत ऋतु आई है। कलिया मुस्काती हंस-हंस गाती। पुरवा पंख डोलाई है। महक उड़ी है चहके चिड़िया। भंवरे मतवाले मंडरा रहे हैं। सोलह सिंगार से क्यारी सजी है। रस पीने को आ रहे हैं। लगता है इस चमन बाग में। फिर से चांदी उग आई है।। अलौकिक आनंद अनोखी छटा। अब बसंत ऋतु आई है। कलिया मुस्काती हंस-हंस गाती। पुरवा पंख डोलाई है।
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