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aakho ki trh hindi poem

aakho ki trh hindi poem

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तूफान जुल्मों जब्र का सर से गुज़र लिया
कि शक्ति-भक्ति और अमरता का बर लिया।
खादिम लिया न साथ कोई हमसफर लिया,
परवा न की किसी की हथेली पर सर लिया।
आया न फिर क़फ़स में चमन से निकल गया।
दिल में वतन बसा के वतन से निकल गया।।

बाहर निकल के देश के घर-घर में बस गया;
जीवट-सा हर जबाने-दिलावर में बस गया।
ताक़त में दिल की तेग़ से जौर में बस गया;
सेवक में बस गया कभी अफसर में बस गया।
आजाद हिन्द फौज का वह संगठन किया।
जादू से अपने क़ाबू में हर एक मन किया।।

ग़ुर्बत में सारे शाही के सामान मिल गये,
लाखों जवान होने को कुर्बान मिल गये।
सुग्रीव मिल गये कहीं हनुमान् मिल गये
अंगद का पाँव बन गये मैदान मिल गये‘
कलियुग में लाये राम-सा त्राता सुभाषचन्द्र।
आजाद हिन्द फौज के नेता सुभाषचन्द्र।।

हालांकि! आप गुम हैं मगर दिल में आप हैं
हर शख़्स की जुबान पै महफिल में आप हैं।
ईश्वर ही जाने कौन-सी मन्जिल में आप हैं,
मँझधार में हैं या किसी साहिल में आप हैं।
कहता है कोई, अपनी समस्या में लीन हैं।
कुछ’ कह रहे हैं, आप तपस्या में लीन हैं।।

आजाद होके पहुँचे हैं सरदार आपके,
शैदा वतन के शेरे-बबर यार आपके,
बन्दे बने हैं काफिरो-दीदार आपके,
गुण गाते देश-देश में अखबार आपके।।
है इन्तजार आप मिलें, पर खुले हुए।
आँखों की तरह दिल्ली के हैं दर खुले हुए।।

aakho ki trh hindi poem
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