आ रही रवि की सवारी।
नव-किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने
स्वहर्ण की पोशाक धारी।
आ रही रवि की सवारी!
विहग, बंदी और चारण,
गा रही है कीर्ति-गायन,
छोड़कर मैदान भागी,
तारकों की फ़ौज सारी।
आ रही रवि की सवारी!
चाहता, उछलूँ विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह-
रात का राजा खड़ा है,
राह में बनकर भिखारी।
आ रही रवि की सवारी!
aa rhi hai ravi ki svari hindi poem