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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - मेरा नया बचपन

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - मेरा नया बचपन

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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - मेरा नया बचपन

मेरा नया बचपन

(कुछ पंक्तियां)

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।

गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥

चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।

कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?

ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?

बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥

किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।

किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥

रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।

बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे॥

मैं रोई, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया।

झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया॥

– सुभद्रा कुमारी चौहान   

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - मेरा नया बचपन
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