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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - मेरा गीत

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - मेरा गीत

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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - मेरा गीत

मेरा गीत

जब अंतस्तल रोता है,

कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ?

इन टूटे से तारों पर,

मैं कौन तराना गाऊँ??

सुन लो संगीत सलोने,

मेरे हिय की धड़कन में।

कितना मधु-मिश्रित रस है,

देखो मेरी तड़पन में॥

यदि एक बार सुन लोगे,

तुम मेरा करुण तराना।

हे रसिक! सुनोगे कैसे?

फिर और किसी का गाना॥

कितना उन्माद भरा है,

कितना सुख इस रोने में?

उनकी तस्वीर छिपी है,

अंतस्तल के कोने में॥

मैं आँसू की जयमाला,

प्रतिपल उनको पहनाती।

जपती हूँ नाम निरंतर,

रोती हूँ अथवा गाती॥

– सुभद्रा कुमारी चौहान

 

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - मेरा गीत
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