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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - चिंता

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - चिंता

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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - चिंता

चिंता

लगे आने, हृदय धन से

कहा मैंने कि मत आओ।

कहीं हो प्रेम में पागल

न पथ में ही मचल जाओ॥

कठिन है मार्ग, मुझको

मंजिलें वे पार करनीं हैं।

उमंगों की तरंगें बढ़ पड़ें

शायद फिसल जाओ॥

तुम्हें कुछ चोट आ जाए

कहीं लाचार लौटूँ मैं।

हठीले प्यार से व्रत-भंग

की घड़ियाँ निकट लाओ॥

–सुभद्रा कुमारी चौहान   

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - चिंता
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