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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - चलते समय

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - चलते समय

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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - चलते समय

चलते समय

तुम मुझे पूछते हो ’जाऊँ’?

मैं क्या जवाब दूँ, तुम्हीं कहो!

’जा...’ कहते रुकती है जबान

किस मुँह से तुमसे कहूँ ’रहो’!!

सेवा करना था जहाँ मुझे

कुछ भक्ति-भाव दरसाना था।

उन कृपा-कटाक्षों का बदला

बलि होकर जहाँ चुकाना था॥

मैं सदा रूठती ही आई,

प्रिय! तुम्हें न मैंने पहचाना।

वह मान बाण-सा चुभता है,

अब देख तुम्हारा यह जाना॥

–सुभद्रा कुमारी चौहान   

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - चलते समय
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