अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - मैं जी भर जिया
मैं जी भर जिया
मौत से ठन गई
जूझने का मेरा कोई इरादा न था
मोड़ पर मिलेंगे इसका कोई वादा न था
रास्ता रोककर खड़ी हो गई
यूँ लगा जिंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उम्र क्या दो पल भी नहीं
जिंदगी सिलसिला आजकल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ
लौट कर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं
तू दबे पांव चोरी-छिपे से ना आ
सामने वार कर फिर मुझे आजमा
मौत से बेखबर जिंदगी का सफर
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं
दर्द अपने पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार परायों से मुझे इतना मिला
न अपनों से बाकी है कोई गिला
हर चुनौती से 2 हाथ में ने किए
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।।
–अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - मैं जी भर जिया