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अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - करो बीस्सोंं समझौते

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - करो बीस्सोंं समझौते

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अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - करो बीस्सोंं समझौते

करो बीस्सोंं समझौते

(पाकिस्तान के संदर्भ में लिखी गई कविता)

 

एक नहीं करो बीस्सोंं समझौते

इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो

चिंगारी का खेल बुरा होता है

औरों के घर में आग लगाने का वो सपना 

वो सपना सदा अपने ही घर में खरा होता है।।

अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो

अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ

ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखे खोलो

आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है

तुम्हें मुफ्त में मिली, न कीमत गई चुकाई

अंग्रेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं 

मां को खंडित करके तुमको लाज न आई।।

जब तक गंगा की धार सिंधु में ज्वार, अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष

स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे अगणित जीवन योवन अशेष

अमेरिका क्या, संसार भले ही क्यों ना हो विरुद्ध

काश्मीर पर भारत का रुख नहीं झुकेगा

एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते

स्वतंत्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा।।

–पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - करो बीस्सोंं समझौते
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