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अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - गीत नय़ा गाता हूँ

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - गीत नय़ा गाता हूँ

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अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - गीत नय़ा गाता हूँ

गीत नय़ा गाता हूँ

(पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी)

 

बेनकाब चेहरे हैं

दाग बड़े गहरे हैं।

टूटता तिलस्म

आज सच से भय खाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

गीत नहीं गाता हूं।।

लगी कुछ ऐसी नजर

बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

गीत नहीं गाता हूं।।

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर

पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात कोयल की कूक रात

प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं

गीत नया गाता हूं

गीत नया गाता हूं।।

टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी

अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा,

रार नहीं ठानूंगा

काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं

गीत नया गाता हूं।।

–पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - गीत नय़ा गाता हूँ
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