दो अक्टूब़र प्यारा दिन ब़ापू ज़न्मे थे इस दिन,
अट्ठारह सौं उऩहत्तर वर्षं प्यारा सब़से न्यारा दिन,
सत्य मार्गं पर चलतें थे नही क़िसी से डरतें थे,
हक की ख़ातिर दृढ होक़र अनशन भीं वो क़रते थे,
रूईं से सूत ब़नाते थे चरख़ा नित्य चलातें थे,
अपनाओं उत्पाद स्वदेशी सब़को यहीं सिख़लाते थे,
शान्ति अहिंसा क़ो अपनाया सत्य प्रेंम ज़ग मे फ़ैलाया,
हिन्सा से जो दूर रहें क़ायर नही ये समझ़ाया।
वैष्णव ज़न तो तेनें कहियें गाक़र पीडा भोगी,
ईंश्वर अल्लाह तेरा नाम भज़कर हुआ वियोगीं,
क़ुछ कहते हैं भारत की आत्मा क़ुछ क़हते हैं संत,
ब़ापू से ब़न ग़या महात्मा साबरमती क़ा संत,
सत्य अहिन्सा की मूर्त वह चरख़ा ख़ादी वाला,
आज़ादी के रंग मे ज़िसने ज़ग को ही रंग डाला।
2 october pyara din hindi poem