वरीयता दी संस्कार की vareeyata dee sanskaar kee
मांसाहार की ठुकरा वरीयता दी संस्कार की
एक बालक हाई स्कूल में पढ़ता था।
वह अपने कुछ मित्रों पर इतना विश्वास करने लगा था कि उनके बातों के सामने घरवालों की बातों का असर भी कम होता था।
इन्हीं मित्रों ने एक दिन उसे मांसाहार का न्योता दिया, जिसे उसने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उसका परिवार शाकाहारी था।
लेकिन उसके मित्र तो उसके पीछे ही पड गए।
मित्र उस बालक को समझाते कि मांसाहार नहीं करने से मनुष्य कमजोर हो जाता हे।
अंग्रेज मांसाहारी हैं, इसलिए भारत पर शासन कर रहे हें आदि।
धीरे-धीरे उस बालक पर उनकी बातों का असर होने लगा और अंततः एक दिन उसके मित्रों ने उसे मांसाहार लेने के लिए राजी कर लिया।
उसके मित्रों ने शाम को एक मांसाहारी ढाबे पर इकट्ठा होकर मांसाहार भोजन करने की योजना बनायी जिसके लिए उसने हां कर दिया।
मित्रों के दबाव में उसने हां तो कर दिया, किंतु उसे पश्चात्ताप हुआ।
वह यह सोचकर ग्लानि से भर गया कि सात्विक प्रकृति के माता-पिता को जब इस बात का पता चलेगा, तो जीवित रहते हुए उनकी दशा मृतक के समान हो जाएगी।
एक ओर मित्रों की दलीलें थी कि मांसाहार जरूरी है और दूसरी ओर माता-पिता के संस्कार।
बहुत सोच-विचार और गंभीर मंथन के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि माता-पिता को धोखा देना बहुत बुरा है, क्योंकि वे जीवनदाता हैं।
इसलिए वह माता-पिता के कहे अनुसार ही चलेगा और उनके दिए संस्कारों के विरुद्ध कोई आचरण नहीं करेगा।
यह तय करते ही उसके मन से मांसाहार का विचार सदा क॑ लिए छूट गया।
अगले दिन उसके मित्रों ने ढाबे पर न आने का कारण पूछा, तो उसने मांसाहार लेने से साफ इंकार कर दिया।
सार यह है कि अच्छे संस्कार, सत्य और ईमानदारी की राह बहुत कठिन होती है, किंतु उस पर चलने वाला आत्मिक रूप से सदेव सुखी रहता है।
वरीयता दी संस्कार की vareeyata dee sanskaar kee