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सोचने वाला पर्वत sochne wala parvat

सोचने वाला पर्वत sochne wala parvat

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सोचने वाला पर्वत sochne wala parvat

एक स्थान पर तीन पर्वत थे।

उन पर्वतों के साथ लगी हुई एक बड़ी खाई थी, जिसके कारण कोई उस तरफ नहीं जा पाता था।

एक बार देवताओं का उस ओर आना हुआ। उन्होंने पहाड़ों से कहा - हमें इस क्षेत्र का नामकरण करना है।

तुम में से किसी एक के नाम पर ही नामकरण किया जाएगा।

हम तुम तीनों की एक-एक इच्छा पूरी कर सकते हैं।

एक वर्ष बाद जिस पर्वत का सर्वाधिक विकास होगा, उसी के नाम पर इस क्षेत्र का नामकरण किया जाएगा।

पहले पर्वत ने वर माँगा - मैं सबसे ऊंचा हो जाऊँ, ताकि दूर-दूर तक दिखाई दूँ।

दूसरे ने कहा - मुझे प्राकृतिक संपदाओं से भरकर घना और हरा-भरा कर दो।

तीसरे पर्वत ने वर माँगा - मेरी ऊंचाई कम कर इसे खाई को समतल बना दो, ताकि यह संपूर्ण क्षेत्र उपजाऊ हो जाए।

देवता तीनों की इच्छा पूर्ण होने का वरदान देकर चले गए। जब एक वर्ष बाद देवता उस क्षेत्र में एक बार फिर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पहला पर्वत बहुत ऊंचा हो गया था, किन्तु वहां कोई नहीं जा पाता था।

दूसरा पर्वत इतना अधिक घना व हरा भरा हो गया था कि उसके भीतर सूर्य की रोशनी तक नहीं पहुंच पाती थी, इसलिए कोई उसके भीतर जाने का साहस ही नहीं कर पता था।

तीसरे पर्वत की ऊंचाई बहुत कम हो गई थी और खाई भर जाने से उसके आस-पास की भूमि उपजाऊ हो गई थी, इसलिए लोग वहां पर आकर बसने लगे थे।

देवताओं ने उस क्षेत्र का नाम तीसरे पर्वत के नाम पर रखा।

कथासार यह है कि हर किसी की निगाह में आने की इच्छा और शबे ऊंचा होना अहंकार का प्रतीक है।

प्रकृतिक संपदाओं से भरा होने के बाबजूद किसी के काम न आना स्वार्थी वृत्ति को दर्शाता है।

अपने गुणों व धन का समाज विकास हेतु उपयोग करने वाला ही वास्तव में सम्मान का अधिकारी होता है।

सोचने वाला पर्वत sochne wala parvat
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