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निरूतर हुआ सिकंदर nirootar hua sikandar

निरूतर हुआ सिकंदर nirootar hua sikandar

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निरूतर हुआ सिकंदर nirootar hua sikandar

यूनान के बादशाह सिकंदर का एक ही स्वप्न था सम्पूर्ण विश्व पर अपनी विजय का परचम लहराना।

उसने अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए स्वयं को और अपनी सेना को हर प्रकार से तैयार किया और फिर निकल पड़ा।

अनेक देशों को जीतकर उसने हिंदुस्तान पर चढ़ाई की। जब वह एक गांव से होकर गुजर रहा था, तो एक स्थान पर राह संकरी थी।

वहां एक बुजुर्ग महिला राह रोककर बैठी थी। सिकदर के सैनिकों ने उसे मार्ग से हट जाने को कहा, किंतु वह नहीं हटी।

जब सिकंदर को यह बात पता चली तो वह स्वयं उस महिला के पास पहुंचा और उससे पूछा- “अम्मा! आप रास्ता क्‍यों नहीं छोड़ती ?

' बुजुर्ग महिला ने प्रश्न किया- 'तू कौन है ?” सिकदर ने अभिमानपूर्वक जवाब दिया- “मैं यूनान का बादशाह सिकंदर महान्‌ हूं।

महिला ने पूछा- “तू अपने देश से यहां क्‍यों आया है ?” सिकंदर ने कहा- हिंदुस्तान को जीतने' महिला ने पूछा- “इसे जीतकर क्‍या करेगा ?

सिकंदर का उत्तर था- हिंदुस्तान ही नहीं, मुझे तो अभी पूरा संसार जीतना है।

सभी देशों को जीतकर मैं एक महान्‌ शासक बनूंगा।' बुजुर्ग महिला ने फिर प्रश्न किया- “महान्‌ बनकर क्या करेगा ?

' सिकंदर ने कहा- “सुख से रोटी खाउंगा।' तब बुजुर्ग महिला ने हंसकर कहा- “अरे नासमझ! रोटी तो तू अभी भी खा रहा है।

सुख की रोटी तो साधारण आदमी भी खा सकता है, फिर युद्ध करने की क्‍या जरूरत है ?

” सिकंदर निरुतर हो गया। वस्तुतः दूसरों पर जीत हासिल करने से मात्र अंहकार तुष्ट होता है, जबकि स्वयं पर विजय (इच्छाओं पर नियंत्रण) प्राप्त करने से आत्मा को सुख मिलता है।

निश्चित रूप से अहं से बड़ा आत्मा का संतोष है।

 

निरूतर हुआ सिकंदर nirootar hua sikandar
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