मां की आज्ञा से अपनी प्रतिज्ञा की भंग maan kee aagya se apanee pratigya kee bhang
एक बार राम प्रसाद बिस्मिल का किसी बात पर कुछ लोगों से विवाद हो गया।
उन लोगों ने बिस्मिल की हत्या करने का प्रयास कैेया, लेकिन वह बच गए।
बिस्मिल इस बात को भूले नहीं थे। वे उन लोगों से बदला लेना चाहते थे।
एक-दो बार बे इसके लिए गए भी, किंतु सफलता नहीं मिली।
उनके मन में सदैव यह बात चुभती रहती थी, इस कारण वह बीमार पड़ गए। उन्हें बुखार रहने लगा।
बदले की नकारात्मक भावना ने उन्हें रोगी बना दिया और महीनों तक ईलाज किए जाने पर भी वे ठीक नहीं हुए।
उनकी मां इस रोग का कारण समझ गई।
उन्होंने बिस्मिल से इस विषय में पूछा, तो उन्होंने जो सच था, बता दिया।
मां समझ गई कि प्रतिशोध की प्रबल भावना ने रोग का रूप ले लिया है।
तब उन्होंने बिस्मिल को आज्ञा दी कि तुम प्रतिज्ञा करो कि उन लोगों से बदला नहीं लोगे।
बिस्मिल ने आना-कानी की, तो मां बोली- “इसे तुम मातृ ऋण समझ लो।
इसे चुकाने के लिए तुम्हें प्रतिज्ञा करनी होगी।
क्या तुम इस ऋण को नहीं चुकाओगे ?' बिस्मिल ने कहा- “मैं बदला लेने की प्रतिज्ञा कर चुका हूं। लेकिन मां अड॒ गई।
आखिर उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर मां से वादा किया कि वे बदला नहीं लेंगे।
उसी दिन से उनका ज्वर कम होने लगा और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए।
वस्तुत: मां ईश्वर का प्रतिरूप है और उसके द्वारा दी जाने वाली शिक्षाएं सदा सही मार्गदर्शन करती हैं।
इसलिए हमेशा मां को सुने, मां को गुने और मां को अपने संपूर्ण आचरण में उतारें।
मां की आज्ञा से अपनी प्रतिज्ञा की भंग maan kee aagya se apanee pratigya kee bhang