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कथा सुनने का पुण्य नहीं मिला katha sunane ka punya nahi mila

कथा सुनने का पुण्य नहीं मिला katha sunane ka punya nahi mila

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कथा सुनने का पुण्य नहीं मिला katha sunane ka punya nahi mila

एक सेठ ने संकल्प लिया की बारह वर्ष तक वह प्रतिदिन कथा सुनेंगे। उनकी कामना थी कि उनकी धन, संपदा बढ़ती रहे।

ईश्वर के प्रति भक्ति भाव प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने यह मार्ग चुना। संकल्प लेने के बाद कथा सुनाने के लिए ब्राह्मण की खोज आरंभ हुई।

सेठ जी चाहते थे कि अत्यल्प पारिश्रमिक पर कार्य हो जाए।

इसलिए उन्होंने अनेक ब्राह्मणों का साक्षात्कार लिया। अंत में उन्हें एक जैसा सदाचारी धर्मनिष्ठा ब्राह्मण मिला, जिसने बारह वर्ष तक बहुत कम पारिश्रमिक पर कथा सुनाना स्वीकार कर लिया।

ब्राह्मण तय समय पर प्रतिदिन आता और सेठ जी को कथा सुना जाता।

बारह वर्ष होने ही वाले थे कि सेठ जी को अत्यंत जरूरी व्यापारिक कार्य से बाहर जाना पड़ा। जाने के पूर्व उन्होंने जब यह बात ब्राह्मण को बताई, तो वह बोला - आपके स्थान पर आपके पुत्र कथा सुन लेगा।

यह धर्मनुसार ही है।

सेठ जी ने शंका व्यक्त की - कथा सुनकर मेरा पुत्र वैरागी तो नहीं हो जायेगा ?

ब्राह्मण ने कहा - इतने वर्षों तक कथा सुनने के बाद आप संन्यासी नहीं बने, तो दो-चार दिन में आपका पुत्र कैसे वैरागी बन जाएगा ?

सेठ से कहा - मैं तो कथा इसलिए सुनता था कि धार्मिकता का पुण्य मिले, किन्तु कथा के प्रभाव से मैं वैरागी न बनूं।

यह सुनकर ब्राह्मण बोला - क्षमा करें सेठ जी! आपको कथा का कोई पुण्य नहीं मिलेगा, क्योंकि आपकी धार्मिकता हार्दिक नहीं दिखावटी है और आप इसे स्वार्थवश कर रहे थे।सेठ जी निरुत्तर हो गए। वस्तुतः जब ईशभक्ति निष्काम होती है और तभी वह फलती भी है।

 

कथा सुनने का पुण्य नहीं मिला katha sunane ka punya nahi mila
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