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गुरु ने बचाया शिष्य का जीवन guru ne bachaya shishya ka jeevan

गुरु ने बचाया शिष्य का जीवन guru ne bachaya shishya ka jeevan

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गुरु ने बचाया शिष्य का जीवन guru ne bachaya shishya ka jeevan

एक गुरु और शिष्य तीर्थाटन हेतु जा रहे थे।

चलते-चलते शाम घिर आई तो दोनों एक पेड़ के नीचे रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।

गुरूजी रात्रि में मात्र तीन चार घंटे ही सोते थे, इसलिए उनकी नींद जल्दी पूर्ण हो गई। वे शिष्य को जगाए बिना दैनिक कार्यों से निवृत हो पूजा-पाठ में लग गए।

इसी बीच उन्होंने एक विषधर सर्प को अपने शिष्य की ओर जाते देखा। चूँकि गुरूजी पशु-पक्षियों की भाषा समझते थे, इसलिए उन्होंने सर्प से प्रश्न किया - सोए हुए मेरे शिष्य को डसने का प्रयोजन है ?

सर्प ने उत्तर दिया - महात्म्न! आपके शिष्य ने पूर्वजन्म में मेरी हत्या की थी।

मुझे उससे बदला लेना है। अकाल मृत्यु होने पर मुझे सर्प योनि मिली है। मैं आपके शिष्य को डसकर उसे भी अकाल मृत्यु दूंगा।

क्षणभर विचार के उपरांत गुरूजी बोले - मेरा शिष्य अत्यंत सदाचारी व होनहार होने के साथ ही अच्छा साधक भी है, फिर तुम उसे मरकर विश्व को उसके ज्ञान और प्रतिभा से क्यों वंचित कर रहे हो ?

स्वयं भी इस कार्य से मुक्ति नहीं मिलेगी।

किन्तु सर्प का निश्चय नहीं बदला। तब गुरूजी ने एक प्रस्ताव को रखते हुए कहा - मेरे शिष्य की साधना अभी अधूरी है।

उसे अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना है, जबकि मेरे लक्ष्य पूर्ण हो चुके हैं। मेरे नाश में किसी की हानि नहीं है। अतः उसके स्थान पर मुझे डस लो।

गुरु का यह स्नेह देखकर सर्प का हृदय परिवर्तन हो गया और वह उन्हें प्रणाम कर वहां से चला गया।

वस्तुतः गुरु की गुरुता न केवल शिष्य को ज्ञान देने में, बल्कि उसे पूर्ण परिपक्व होने तक उसकी रक्षा करने में निहित है।

 

गुरु ने बचाया शिष्य का जीवन guru ne bachaya shishya ka jeevan
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