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डरपोक खरगोश darapok kharagosh

डरपोक खरगोश darapok kharagosh

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डरपोक खरगोश darapok kharagosh

तुम जानते होगे कि ख़रगोश बड़े ही डरपोक होते हैं।

एक ख़रगोश को अपनी डरने की आदत बहुत बुरी लगती थी।

वह सोचा करता था - हे भगवान, आपने मुझे इतना डरपोक क्यों बनाया।

ज़रा-सी आवाज़ हुई कि मैं डर जाता हूँ।

कोई प्यार करने के लिए भी हाथ बढ़ाए तो भी मैं डरकर “छिप जाता हूँ।

क्यों हूँ में इतना डरपोक ? आखिर क्‍यों.....?'

उसने सोचा कि अब वह डरेगा नहीं।

उसने अपने-आपसे कहा, “मैं बहादुर हूँ।

मैं डरपोक नहीं हूँ।

' तभी एक हल्की-सी आवाज़ हुई और ख़रगोश डरकर भागने लगा।

आदत इतनी जल्दी थोडे ही न बदलती है।

दौड़ते-दौड़ते वह एक तालाब के किनारे पहुँचा।

वहाँ कुछ मेढक खेल रहे थे।

जैसे ही उन्होंने किसी के आने की आवाज सुनी, वे डरकर तुरंत पानी में कूद गए।

ख़रगोश को तसल्ली हुई।

उसने सोचा, “चलो कोई तो है जो मुझसे भी डरता है।

इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया में सब किसी- न - किसी से डरते हैं और जो सबसे ज़्यादा ताकृतवर है, वह भी ईश्वर से डरता है।

इसलिए अपने से ज़्यादा ताकृतबर जीव से डरना और सावधान रहना कोई बुरी बात नहीं है।'

डरपोक खरगोश darapok kharagosh
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