सुख-शांति का स्थायी आधार sukh-shanti ka sthayi aadhar
आश्रम में रहने वाले शिष्यों ने एक दिन अपने गुरु से प्रश्न किया गुरूजी! धन, कुटुंब और धर्म में से कौन सच्चा सहायक है ?
गुरूजी ने उत्तर में यह कथा सुनाई - एक व्यक्ति के तीन मित्र थे। तीनों में से एक उसे अत्यधिक प्रिय था।
वह प्रतिदिन उससे मिलता और जहाँ खिन जाना होता तो वह उसी के साथ जाता।
दूसरे मित्र से उस व्यक्ति की मध्यम मित्रता थी।
उससे वह दो-चार दिन में मिलता था। तीसरा मित्र से वह दो माह में एक बार ही मिलता और कभी किसी काम में उसे साथ नहीं रखता था।
एक बार अपने व्यापार के सिलसिले में उस व्यक्ति से कोई गलती हो गई। जिसके लिए उसे राजदरबार में बुलाया गया।
वह घबराया और उसने प्रथम मित्र से सदा की भांति साथ चलने का आग्रह किया, किन्तु उसने सारी बात सुनकर चलने से इंकार कर दिया क्योंकि वह राजा से संबंध बिगाड़ना नहीं चाहता था।
दूसरे मित्र ने भी व्यस्तता जताकर चलने में असमर्थता जताई किन्तु तीसरा मित्र न केवल साथ चला बल्कि राजा के समक्ष उस व्यक्ति का पक्ष जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया, जिस कारण राजा ने उसे दोषमुक्त कर दिया।
यह कथा सुनाकर गुरूजी ने समझाया - धन वह है जिसे परम प्रिय मन जाता है, किन्तु मृत्यु के बाद वह किसी काम का नहीं।
कुटुंब यथासंभव सहायता करता है, किन्तु शरीर रहने तक ही।
मगर धर्म वह है जो इस लोक और परलोक दोनों में साथ देते है और सभी प्रकार की दुर्गति से बचाता है।
सार यह है कि मनुष्य को अपनी वाणी व आचरण, दोनों से धर्म का पालन करना चाहिए यही सुख शांति का स्थायी आधार है।
सुख-शांति का स्थायी आधार sukh-shanti ka sthayi aadhar