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jindgi hindi poem

jindgi hindi poem

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दौड़ने की बात तो दूर अभी तो चलने भी नहीं दिया
फ़िर न जाने क्यूँ अभी से इतना थकाए जा रही है,

फुर्सत में कभी बताया ही नहीं कि क्या गुनाह है मेरा
बिन बताए ही मुझ पर इतने जुल्म बरसाए जा रही है,

रखना चाहती है वो मुझे सबसे दूर बस एक तन्हाई में
फ़िर न जाने क्यूँ दिल के इतने हिस्से बनाए जा रही है,

मानो जैसे गुज़ारनी हैं मुझे इस क़ायनात में सदियां
जो हर एक क़दम पर इतने तजुर्बे सिखाए जा रही है,

लाकर मुझे खड़ा किया एक अनजाने से मोड़ पर
न जाने क्यूँ अब यूँ सबसे रूबरू कराए जा रही है,

खुल कर हंसना शब्द तो रखा ही नहीं मेरे शब्दकोश में
एक मुस्कुराहट के पीछे से हर बार ही रुलाए जा रही है,

मंज़िल भी हुई है रुसवा इरादे भी साथ छोड़ रहे हैं
पर फ़िर भी अभी जीने की आरजू दिलाए जा रही है.।।

jindgi hindi poem
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vha muh khol jate hain hindi poem

vha muh khol jate hain hindi poem

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कहाँ पर बोलना है, और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है, वहाँ मुँह खोल जाते हैं। ।
कटा जब शीश सैनिक का, तो हम खामोश रहते हैं।
कटा एक सीन पिक्चर का, तो सारे बोल जाते हैं।
नयी नस्लों के ये बच्चे, जमाने भर की सुनते हैं।
मगर माँ बाप कुछ बोले, तो बच्चे बोल जाते हैं।।
बहुत ऊँची दुकानों में, कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा, तो सिक्के बोल जाते हैं।।
अगर मखमल करे गलती, तो कोई कुछ नहीं कहता।
फटी चादर की गलती हो, तो सारे बोल जाते हैं।
हवाओं की तबाही को, सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती, तो सारे बोल जाते हैं।।
बनाते फिरते हैं रिश्ते, जमाने भर से अक्सर हम
मगर घर में जरूरत हो, तो रिश्ते भूल जाते हैं।।
कहाँ पर बोलना है, और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है, वहाँ मुँह खोल जाते हैं। ।

vha muh khol jate hain hindi poem
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