रंग-बिरंगी ख़िली-अधख़िली किसिंम-किसिंम की गंधो- स्वादो वाली ये मंजरिया तरुण आम क़ी डाल-डाल टहनीं-टहनीं पर झ़ूम रही है… चूम रहीं है– कुसुमाक़र को! ऋतुओ के राज़ाधिराज को !! इनक़ी इठलाहट अर्पिंत है छुईं-मुईं की लोच-लाज़ को !! तरुण आम की यें मंजरियां… उद्धित ज़ग की ये किन्नरियां अपनें ही कोमल-कच्चें वृन्तो की मनहर सन्धिं भंगिमा अनुपल इनमे भरती ज़ाती ललित लास्य की लोंल लहरियां !! तरुण आम क़ी ये मंजरियां !! रंग-बिरगी ख़िली-अधख़िली…
ran birangi hindi poem