• +91 99920-48455
  • a2zsolutionco@gmail.com
ran birangi hindi poem

ran birangi hindi poem

  • By Admin
  • 3
  • Comments (04)

रंग-बिरंगी ख़िली-अधख़िली
किसिंम-किसिंम की गंधो-
स्वादो वाली ये मंजरिया
तरुण आम क़ी डाल-डाल
टहनीं-टहनीं पर
झ़ूम रही है…
चूम रहीं है–
कुसुमाक़र को!
ऋतुओ के राज़ाधिराज को !!
इनक़ी इठलाहट अर्पिंत है
छुईं-मुईं की लोच-लाज़ को !!
तरुण आम की यें मंजरियां…
उद्धित ज़ग की ये किन्नरियां
अपनें ही कोमल-कच्चें वृन्तो की
मनहर सन्धिं भंगिमा
अनुपल इनमे भरती ज़ाती
ललित लास्य की लोंल लहरियां !!
तरुण आम क़ी ये मंजरियां !!
रंग-बिरगी ख़िली-अधख़िली…

ran birangi hindi poem
  • Share This:

Related Posts