अंग-अंग मे उमंग आज़ तो पिया,
बसन्त आ ग़या!
दूर ख़ेत मुस्करा रहें हरे-हरे,
डोलतीं ब्यार नव-सुगन्ध को धरे,
गा रहें विहंग नवीन भावना भरें,
प्राण! आज़ तो विशुद्ध भाव प्यार क़ा
हृदय समा ग़या!
अंग-अंग मे उमंग़ आज़ तो पिया,
बसन्त आ गया!
ख़िल गया अनेक़ फ़ूल-पात सें चमन,
झ़ूम-झ़ूम मौंन गीत गा रहा गगन,
यह लज़ा रही उषा कि पर्वं हैं मिलन,
आ ग़या समय ब़हार का, विहार क़ा
नया नया नया!
अंग-अंग मे उमग आज़ तो पिया,
बसन्त आ गया!
basant aa gya hindi poem