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लोभी राजा मिदास की कहानी सुनहरा

लोभी राजा मिदास की कहानी सुनहरा

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लोभी राजा मिदास की कहानी सुनहरा 

कई वर्षों पहले एक राज्य में मिदास नामक एक लोभी राजा राज करता था. उसकी एक बहुत ही सुंदर पुत्री थी, जिसका नाम ‘मेरीगोल्ड’ था.

मिदास अपनी पुत्री से बहुत प्रेम करता था, किंतु उससे कहीं अधिक उसे सोने से प्रेम था. उसका ख़जाने में सोने का भंडार था. उतना सोना दुनिया में किसी भी राजा के ख़जाने में नहीं था. इसके बाद भी खजाने में जितना सोना बढ़ता, राजा मिदास की लालसा उतनी ही बढ़ती जाती थी. उसके दिन का अधिकांश समय खजाने में रखे सोने को गिनने में निकल जाता था. सोने के लालसा में अक्सर वह अपनी पुत्री को अनदेखा कर देता था.

दिन पर दिन उसकी सोने की ललक बढ़ती जा रहे थी. और अधिक सोना प्राप्त करने के उद्देश्य से उसने एक बार अन्न-जल त्याग कर ईश्वर की कठोर उपासना की. उसकी उपासना से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उसे दर्शन दिये और मनचाहा वरदान मांगने को कहा.

मिदास बोला, ”हे ईश्वर! मुझे वरदान दीजिये कि मैं जिस भी वस्तु हो छुऊं, वह सोने की बन जाये.”

ईश्वर मिदास की लालसा समझ रहे थे. वरदान देने के पूर्व उन्होंने पूछा, “राजन! क्या यह वरदान मांगने के पूर्व तुमने अच्छी तरह विचार कर लिया है.”

“हे ईश्वर! मैं इस विश्व का सबसे धनी राजा बनना चाहता हूँ. मैंने अच्छी तरह सोच लिया है. मुझे यही वरदान चाहिए. कृपया मुझे वरदान प्रदान कीजिये.” मिदास ने उत्तर दिया.

“तथास्तु! मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि कल सूर्य की पहली किरण के साथ तुम जिस भी वस्तु को छुओगे, वह सोने की बन जायेगी.” आशीर्वाद देने के उपरांत ईश्वर अंतर्ध्यान हो गए.

राजा मिदास यह वरदान पाकर खुशी से फूला नहीं समाया. दूसरे दिन सोकर उठने के उपरांत अपनी शक्ति परखने के लिए उसने अपने पलंग को छूकर देखा. वह पलंग सोने का बन गया. मिदास बहुत खुश हुआ. दिन भर वह सुध-बुध खोकर अपने महल की हर चीज़ को सोने में परिवर्तित करने में लगा रहा. उसे भोजन तक का होश न रहा.

शाम तक वह थककर चूर हो चुका था. उसे जोरों की भूख लग आई थी. उसने अपने सेवकों को भोजन परोसने के लिये कहा. भोजन परोसा गया. किंतु यह क्या? जैसे ही उसने भोजन को हाथ लगाया, वह सोने में परिवर्तित हो गया. अब सोने को तो खाया नहीं जा सकता था. भूख से बेहाल राजा मिदास ने फल खाकर भूख मितानी चाही. किंतु उसके छूते ही वह भी सोने में परिवर्तित हो गया. वह गुस्से से तिलमिला उठा और उठकर बाहर चला आया.

बाहर टहलते हुए वह अपने महल के उद्यान में पहुँचा. वहाँ उसने देखा कि उसकी नन्ही पुत्री ‘मेरीगोल्ड’ खेल रही है. उसका सुंदर मुख देख राजा के मन में प्रेम उमड़ आया. कुछ क्षणों के लिए वह अपनी भूख भूल गया. जब ‘मेरीगोल्ड’ ने अपने पिता को देखा, तो वह उसके पास दौड़ी चली आई और प्रेमपूर्वक उससे लिपट गई. राजा मिदास ने प्जैरेम जताते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और तुरंत ही वह सोने में परिवर्तित हो गई. अपनी नन्ही पुत्री को सोने का बना देख वह दु:खी हो गया और रोने लगा.

उसने फिर से ईश्वर से प्रार्थना की. प्रार्थना सुनकर ईश्वर प्रकट हुए और उससे पूछा, “राजन! क्या हुआ? अब तुम्हें क्या वरदान चाहिए?”

मिदास रो-रोकर कहने लगा, “हे ईश्वर! मुझे क्षमा करें. सोने की लालसा में मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी और मैं यह वरदान मांग बैठा था. किंतु अपनी पुत्री को खोने के बाद अब मेरी आँखें खुल गई है. मुझे समझ आ गया है कि हर वस्तु अमूल्य है और उन सबमें सबसे अमूल्य है मेरी पुत्री. भगवन, कृपया यह वरदान वापस ले लें और मुझे मेरी पुत्री लौटा दें. अब मैं सोने की लालसा त्याग दूंगा और अपना कोषागार निर्धनों और ज़रूरतमंदों के लिए खोल दूंगा.”

ईश्वर ने जब उसके पछतावे के आँसू देखे, तो अपना वरदान वापस ले लिया. दूसरे दिन सूर्य की पहली किरण के साथ सारी वस्तुएं अपने वास्तविक रूप में आने लगी. राजा मिदास की पुत्री भी अपने वास्तविक स्वरुप में आ गई. उसने  ने अपने वचन के अनुसार अपना कोषागार निर्धनों और ज़रूरतमंदों के लिए खोल दिया. उसका लोभ ख़त्म हो चुका था. वह एक संतुष्ट जीवन व्यतीत करने लगा.

सीख 

1..धन महत्वपूर्ण अवश्य है, किंतु सर्वस्व नहीं. प्रेम, ख़ुशी, संतुष्टि कभी भी धन से खरीदी नहीं जा सकती.

2. लोभ का परिणाम बुरा होता है.

लोभी राजा मिदास की कहानी सुनहरा
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