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बालिका हेलेन बाकर की सत्यनिष्ठा

बालिका हेलेन बाकर की सत्यनिष्ठा

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बालिका हेलेन बाकर की सत्यनिष्ठा

दो सौ साल पहले की बात है। स्काटलैंड के एक गरीब परिवार में बालिका हेलेन वाकर का जन्म हुआ था। उस समय राज्य की ओर से एक कड़ा कानून प्रचलित था, जिसको तोड़ने पर मृत्युदण्ड दिया जाता था।

हेलेन अपनी छोटी बहिन को बहुत प्यार करती थी, सदा अपने पास रखती थी। इस छोटी बालिका ने कानून तोड़ दिया था। यद्यपि वह भोली-भाली और सीधी थी और उसने जान-बूझकर अपराध नहीं किया था, तो भी यह बात तो निस्चित थी कि उसे राजदण्ड भोगना पड़ेगा।

हेलेन के लिए अत्यन्त कड़ी परीक्षा का अवसर उपस्थित हुआ। यदि वह विचारपति सामने झूठी गवाही दे देती तो उसकी बहिन की प्राणरक्षा में कुछ भी संदेह नहीं था और न किसीको पता ही चलता कि उसकी छोटी बहिन ने कानून तोड़ा है।

पर हेलेन को यह पवित्र सीख मिली थी कि असत्य बोलने से बढकर दुनिया में दूसरा कोई पाप है ही नहीं। वह अच्छी तरह जानती थी कि इस महापाप का कोई प्रायश्चित ही नहीं है। उसने मन में यह बात बैठा ली थी कि बहिन को बचाने के लिए मुझे अपने प्राण से हाथ भले ही धोना पड़े, पर मैं झूठ नहीं बोलूँगी।

उसकी बहिन का स्वभाव दूसरे प्रकार का था। उसने हेलेन को झूठ बोलकर अपने प्राण बचाने के लिये उकसाना चाहा, बड़ी विनती की, पर हेलेन को निश्चय से डिगाना आसान काम नहीं था। छोटी बहिन ने कहा कि 'तुम्हारा हृदय पत्थर है, मैं मरने जा रही हूँ और तुम्हें न्याय और सत्यकी बात सूझ रही है। तुम्हारे थोड़ा-सा झूठ बोल देनेपर मेरी प्राणरक्षा हो जाएगी।' पर हॆलेन टस-से-मस नहीं हुई।

हेलेन झूठ भले न बोलती, पर छोटी बहिन को मृत्यु के दुःख से बचा लेने का एक रास्ता तो था ही। यह तो निश्चित था कि उसकी बहिन मृत्यु की सजा पाती, पर साथ- ही-साथ बादशाह से क्षमा-दान पाने पर उसके प्राण बच सकते थे। सबसे टेढा प्रश्न तो यह था कि स्काटलैंड के बादशाह सैकड़ो मिल की दूर पर लंदन में रहते थे। हेलेन गरीब माता-पिता की संतान थी। उस समय रेलगाड़ी नहीं थी, न सुरक्षित राजमार्ग थे, धनी लोग तो घोड़ागाड़ियों पर राजधानी में जाया करते थे। एक बालिका पैदल चलकर इतनी दूरकी यात्रा किस तरह पूरी करेगी। यह एक विचित्र समस्या थी। उसे तो पैदल ही रास्ता पूरा करना था। वह चल पड़ी। अपने सत्य की रक्षा के लिए वह रात-रातभर चलती रही, निर्जन वनों में बीहड़ रास्तों और भयंकर शीत में परमात्मा का स्मरण करती हुई वह लंदन जा पहुँची। उसके कोमल तलुओं में बड़े- बड़े छाले पड़ गये थे। अंग-अंग में भीषण पीड़ा हो रही थी, पर यह सब कुछ सत्यकी रक्षा और न्याय के प्रति पूर्ण भक्ति के लिये था।

हेलेन अपने पिता के एक मित्र के घर गयी। वे स्काटलैंड के निवासी थे। वे अरगिल के सामन्त थे। उस समय बादशाह लंदन से बाहर गये हुए थे, इसलिए हेलन ने सामन्त से कहा कि 'मैं महारानी से मिलना चाहती हूँ, आप इस काम में मेरी सहायता करें। सामन्त ने सूखा-सा उत्तर दिया, पर इस से हेलेन निराश नहीं हुई। उसने धैर्य से काम लिया। वह महारानी से स्वयं मिली और अपने लंदन आने का कारण बता दिया। सत्य की विजय होती है, महारानी बालिका हेलेन की सत्यनिष्ठा और राज्यभक्ति से बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने उसकी बहिन को क्षमा-दान दिया, हेलेन ने सत्य के बलपर अपनी बहिन को काल के गाल से बाहर निकाल लिया।

बालिका हेलेन बाकर की सत्यनिष्ठा
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