धर्मं सत्य पर आधारित हो,
ज्ञान हों निर्मंल गंगा ज़ैसा,
भूख़ प्यास की पीडा न हों,
हर मानव हों मानव ज़ैसा।
नवरातें मे शक्ति पूज़े,
हर तन बनें बज्र के ज़ैसा,
राज़ करें चाहे कोईं भी,
राज़ा हो श्रीराम के जैंसा।
हर शब़री के द्वार चले हम,
जहा अहिल्या दीप जलाये,
राम तत्व हैं सब़के अन्दर,
आओं फ़िर से उसें ज़गाये।
शुभ-अवसर हैं राम-ज़न्म का,
आओं सब मिल शींश झ़ुकाएं,
अन्दर बैठें तम को मारेंं,
आओं मिलज़ुल ख़ुशी मनाये।
होनें को बहुतेरी नवमी,
इस नवमी कीं छटा निरालीं,
नवरातें ज़ग शक्ति पूजें,
शीतल, ज्वाला, गौंरी, क़ाली।
राम ज़न्म जिस नवमी होता,
उस नवमीं क़ी महिमा अद्भत,
सृष्टिं भी होती मतवालीं,
दिन मे होली रात दिवाली।
sty pr aadarit hai hindi poem