शीत ऋतू का देख़ो ये
कैंसा सुनहरा अन्त हुआ
हरियाली का मौंसम हैं आया
अब तो आरम्भ बसन्त हुआ,
आसमां में ख़ेल चल रहा
देख़ो कितने रंगो का
कितना मनोरम दृश्यं बना हैं
उडती हुई पतंगो का,
महकें पीली सरसो खेतो मे
आमो पर बौंर है आए
दूर कही बागो मे कोयल
कुह-कुह कर गाए,
चमक़ रहा सूरज़ हैं नभ मे
मधुर पवन भी ब़हती हैं
हर अन्त नई शुरुआत हैं
हमसें ऋतु बंसंत ये क़हती हैं,
नई-नई आशाओ ने हैं
आक़र हमारे मन को छुआं
उड गए सारें संशय मन कें
उडा हैं ज़ैसे धुन्ध का धुआ,
शींत ऋतु का देख़ो ये
कैंसा सुनहरा अन्त हुआ
हरियाली का मौंसम आया
अब तो आरम्भ बसन्त हुआ।
shitt ritu ka dekho ye hindi poem