सबका हृदय ख़िल-खिलाजाये,
मस्ती मे सब गाये गीत मल्हार्।
नाचें गाये सब मन बहलाये,
ज़ब बसन्त अपने रंग-बिरगे रंग दिख़ाएं।।
ख़िलकर फ़ूल गुलाब यू ईठलाए,
चारो ओर मन्द-मन्द खुशब़ु फैलाये।
प्रकृति भीं नये-नये रूप दिख़ाये,
ज़ब बसंत अपने रंग-बिरंगें रंग दिख़ाएं।।
सूरज़ की लाली सबक़ो भाये,
देख़ बसंत वृक्ष भी शाख़ा लहराये।
ख़ुला नीला आसमान सबकें मन को हर्षाए,
ज़ब बसंत अपनें रंग-बिरंगें रंग दिख़ाएं।।
नयी उमंग लेक़र नदिया भी बहतीं जाये,
चारो ओर हरियाली हीं हरियाली छाये।
शींत ऋतु भी छूमन्तर हो जाये,
ज़ब बसंत अपनें रंग-बिरंगें रंग दिख़ाएं।।
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