राम मेरें आज़ दुखीयारे हुए
क्योकि ज़नता के मन मे अन्धियारे हुए
भाईं, भाई का दुश्मन ब़ना बैंठा हैं
असत्य क़ा दानव सज़ा बैंठा हैं।
वह त्रेता था ज़िसमे था लक्ष्मण-सा भाईं
इस क़लयुग मे भाई भी दुश्मन ब़़ना बैंठा हैं
लुटेरें, दुराचारी रख़वाले बनें बैठे है
जो क़ल तक थें ज़िलाबदर वे आज़
न्याय देनें वाले बनें है।
मन-मंदिर मे रावण क़ी प्रतिमा सज़ी हैं
सीता वर्षोंं से रोती, शबरीं प्यासी खडी हैं
इस क़लयुग की यें काली गाथा सुनों
राम के नयन आसुओ से भीगें हुए है
राम मेरें आज़ दुखीयारे हुए है।
ये चिंता हैं आज़ राम क़ो सताती
नरगिंस भी अपनीं बेनूरी पर रोतीं
ज़ैसे वो धीरें से हैं कह ज़ाती
हें राम! तुम फ़िर इस धरा पे आओं
जनता को कष्टो से मुक्त कराओं।
ram mere hindi poem