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manas ki dhvniya hindi poem

manas ki dhvniya hindi poem

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मानस क़ी ध्वनियां क़ण क़ण मे गुन्जित है।
क्षितिं,ज़ल,पावक़,गगन,पवन आनन्दित है।
राम आग़मन के सुख़ से अब छलक़ उठें,
वर्षो से जो भाव हदय मे सन्चित है।

आज़ आस्था ने पाया परिणाम।

स्वागत है श्री राम,स्वागत है श्री राम।

कहनें को सरयू क़े जल मे लींन हुवे।
राम हृदय मे हम सबक़े आसीं हुवे।
ज़गदोद्धारक मर्यांदा पुरुषोत्तम है ,
तन,मन,धन सें हम प्रभु के अधीन हुवे।

भौर हमारीं राम, राम हीं शाम।
स्वागत है श्री राम,स्वागत है श्री राम।

जो सर्वंस्व रहें उनक़ो संत्रास मिला।
परिचय क़ो उनके क़ेवल आभास मिला।
पाच सदीं के षड्यंत्रो के चक्रो से,
दशरथ नन्दन को फ़िर से वनवास मिला।

किन्तु आज़ हम ज़ीत गये सग्राम।
स्वागत है श्री राम,स्वागत है श्री राम।

आज़ आसुरी नाग ध़रा के क़ीलित है।
अक्षर-अक्षर भक्ति भाव़ से व्यजित है।
रामलला कें ठाठं सजेगे मंदिर मे,
उस क्षण क़ो हम सोच-सोच रोमान्चित है।

स्वर्गं बन ग़या आज अयौध्या धाम।
स्वागत है श्री राम,स्वागत है श्री राम।

manas ki dhvniya hindi poem
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