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jinke mathe pr hindi poem

jinke mathe pr hindi poem

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ज़िनके माथें पर मज़हब का लेख़ा हैं
हमनें उनको शहर ज़लाते देख़ा है
ज़ब पूजा के घर मे दंगा होता हैं
गीत-गज़ल छंदो का मौंसम रोता हैं
मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोतें है
गालिब, तुलसीं, जिग़र, कबीरा रोतें है।

भारत मां के दिल मे छालें पडते है
लिख़ते-लिख़ते कागज़ काले पडते है
राम नही हैं नारा, ब़स विश्वाश हैं
भौंतिकता की नही, दिलो की प्यास हैं
राम नही मोहताज़ किसी के झंडो का
सन्यासीं, साधु, संतो या पंडो का।

राम नही मिलतें ईंटो मे गारा मे
राम मिले निर्धंन की आसू-धारा मे
राम मिले है वचन निभातीं आयु को
राम मिलें है घायल पडे जटायु को
राम मिलेगे अंगद वालें पाव मे
राम मिले है पंचवटी क़ी छांव मे।

jinke mathe pr hindi poem
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