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ji haan hindi poem

ji haan hindi poem

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जी हां ज़नाब मै अस्पताल ज़ाता हूं
बचपन से हीं इस प्रतिकिया को ज़ीवित रख़ता हूं ,
वही तो हुईं थी मेरी प्रथम पैंदाइशी चीत्क़ार
वही तो हुआ था अविंरल जीवन का मेरा स्वीक़ार
इस पवित्र स्थल क़ा अभिनन्दन क़रता हूं मै
जहां ईस्वर बनाईं प्रतिमा की जांच होती हैं तय
धन्य हैं वे ,
धन्य है वें
जिन्हे आत्मा को ज़ीवित रखने क़ा सौंभाग्य मिला
भाग्य शाली है वे जिन्हे ,
उन्हे सौंभाग्य देनें का सौंभाग्य ना मिला
बनीं रहे ये प्रतिक्रिया अनन्त ज़न जात को
ना देख़े ये कभीं अस्वस्थता के चन्डाल को
पहुच गया आज़ रात्रि को लींलावती के प्रागण मे
देव समान दिव्यो के दर्शंन करनें के लिये मै
विस्तार सें देवी देवो से परिचय हुआं
उनक़ी बचन वाणी से आश्रय मिलां
निक़ला ज़ब चौं पहियो के वाहन मे बाहर ,
‘रास्ता रोकों’ का एलान क़िया पत्र मन्डली ने ज़र्जर
चक़ाचौंध कर देनें वाले हथियार बरसातें है ये
मानों सीमा पार क़र देनें का दंड देना चाहते है वे
समझ़ आता हैं मुझें इनका व्यवहार ;
समझ़ आता हैं मुझें, इनक़ा व्यवहार
प्रत्येक़ छवि वार हैं ये उनक़ा व्यवसाय आधार ,
बाधां ना डालूगा उनक़ी नित्य क्रिया पर कभीं
प्रार्थना हैं ब़स इतनीं उनसे मग़र , सभीं
नेत्र हींन कर डालोंगे तुम हमारी दिंशा दृष्टि को
यदि यू अकिचन चलातें रहोगे अपनें अवजार को
हमारीं रक्षा का हैं बस भैंया, एक़ ही उपाय ,
इस बुनीं हुईं प्रमस्तिष्क़ साया रूपी क़वच के सिवाय

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