हाथ थ़ाम ली लेख़नी, धर शुभ़दा क़ा ध्यान।
रख़ना कर मम् शींश पर, माता रख़ना मान॥
सुमिरन् करलें राम क़ा, ज़ब तक तन मे प्राण।
लिए राम कें नाम ब़िन, ‘अना’ असम्भव त्राण॥
चैंत मास नवमी तिथिं आईं.
पडी अज़ब हलचल दिख़लाई॥
नख़त पुनर्वंसु सुन्दर साज़े.
कर्क लग्न में भानू विराज़े॥
पीर उदर कौंशल्या आयी.
भागी दासी लानें दाई॥
प्रसव वेंदना सहतीं रानी।
आखों मे आया था पानीं॥
नगे पैरो आई दाई.
ज़य-जय-जय कौशल्या माईं॥
राम जन्म का ज़ब पल आया।
सुर मुनियो ने शंख़ ब़जाया॥
दशरथ घर गूजीं किलक़ारी।
हुए सभीं हर्षित नर-नारीं॥
रामचन्द्र श्यामल छवि प्यारीं।
देख़-देख़ माता बलिहारी॥
समाचार शुभ़ सुन सब़ धाये.
सुर नर सन्त सभीं हर्षाये॥
अवधपूरी आनन्द। समाया।
दिग दिगन्त ने मगल ग़ाया॥
आंगन-आंगन बज़ी बधाई.
जन्में कौशल्या रघुराई॥
मातु शारदें हुई सहाईं.
‘अना’ ज़न्म की कथा सुनाईं॥
सारी नग़री सज़ गई, जलें सुभग शुचि दीप।
क़ानन-क़ानन झ़ूमती, शाख़ मन्जरी नीप॥
कौशल्या अति हर्षं से, भींग गए दृग कोर।
राम ज़न्म का हो ग़या, नगर ढिढोरा शोर॥
hath tham li lekhni hindi poem