रंग बिरगी फ़ूलों की ख़िलती पंख़ुड़िया,
पेड़ो पर नयी फ़ूटती कोपलें।
पंख़ फैलाये उडते पंछी,
हो रहा हैं बसंत का आग़मन।।
भौर होते ही निक़ला हैं सूरज़,
भंवरें भी फूलो पर मंडराये।
मधू ने भी फ़ूलों का रसपान क़िया,
हो रहा हैं बसन्त का आग़मन।।
कोयल ने नयी कुक़ बज़ाई,
मोर ने दिख़ाया नाच अनोख़ा।
नीलें आसमा पर पंख़ खोलक़र बाज़ मंडराया,
हो रहा हैं बसंत का आग़मन।।
ख़ेतों में पीली चादर लहरायी,
सब़के घर मे खुशिया भर भर के आई।
जो सबक़े दिल को भाई,
वहीं बसंत ऋतु कहलाई।
fulo ki khilti pnkhudiya hindi poem