धरा पे छाई है हरियाली खिल गई हर इक डाली डाली नव पल्लव नव कोपल फुटती मानो कुदरत भी है हँस दी छाई हरियाली उपवन मे और छाई मस्ती भी पवन मे उडते पक्षी नीलगगन मे नई उमन्ग छाई हर मन मे लाल गुलाबी पीले फूल खिले शीतल नदिया के कूल हँस दी है नन्ही सी कलियाँ भर गई है बच्चो से गलियाँदेखो नभ मे उडते पतन्ग भरते नीलगगन मे रंग देखो यह बसन्त मसतानी आ गई है ऋतुओ की रानी।
dhra pe chai hai hryali hindi poem