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aao aao fir hindi poem

aao aao fir hindi poem

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आओ, आओ फिर,
मेरे बसन्त की परी–छवि-विभावरी,
सिहरो, स्वर से भर भर,
अम्बर की सुन्दरी-छवि-विभावरी।

बहे फिर चपल ध्वनि-कलकल तरंग,
तरल मुक्त नव नव छल के प्रसंग,
पूरित-परिमल निर्मल सजल-अंग,
शीतल-मुख मेरे तट की निस्तल निझरी–
छवि-विभावरी।

निर्जन ज्योत्स्नाचुम्बित वन सघन,

सहज समीरण, कली निरावरण
आलिंगन दे उभार दे मन,
तिरे नृत्य करती मेरी छोटी सी तरी–
छवि-विभावरी।

आई है फिर मेरी ’बेला’ की वह बेला
’जुही की कली’ की प्रियतम से परिणय-हेला,
तुमसे मेरी निर्जन बातें–सुमिलन मेला,
कितने भावों से हर जब हो मन पर विहरी–
छवि-विभावरी।

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