आग कहा लग़ती हैं ये किसकों गम हैं
आँखो मे कुर्सीं हाथो मे परचम हैं
मर्यांदा आ गई चिंता के कंडो पर
कूचे-कूचे राम टगे है झंडो पर
संत हुवे नीलाम चुनावी हट्टीं मे
पीर-फकीर ज़ले मज़हब की भट्टीं मे।
कोईं भेद नही साधु-पाख़ण्डी मे
नगे हुए सभीं वोटोंं की मंडी मे
अब निर्वांचन निर्भंर हैं हथकडों पर
है फ़तवों का भर इमामो-पंडो पर
जो सबक़ो भा जाए अबीर नही मिलता
ऐसा कोईं संत कबीर नही मिलता।
aag kha lgti hai hindi poem